“सुरीले कंठ के धनी व राष्ट्रीय स्तर के विख्यात भजन सम्राट प्रकाश माली”

“सुरीले कंठ के धनी व राष्ट्रीय स्तर के विख्यात भजन सम्राट प्रकाश माली”

कहते हैं न प्रतिभा किसी परिचय की मोहताज नहीं होती और किसी न किसी रास्ते से वह अपना मुकाम बना ही लेती है। ऐसा ही एक मुकाम भजनों की दुनिया में बनाया है

राजस्थान के बाड़मेर जिले के भजन सम्राट प्रकाश माली ने।

जिनके भजनों की दीवानगी का आलम यह है कि राज्य स्तर नहीं राष्ट्रीय स्तर नहीं बल्कि विश्व स्तर पर जहां पर भी हिंदी भाषी लोग रहते हैं उनके भजनों को बड़े ही चाव से सुनते हैं और अपना प्यार उनको विभिन्न रूपों में भेजते रहते हैं। लोकगीत हो या फिर पुराने गीतों को नए रूप में प्रस्तुत करने की बात हो या फिर अपना एक अलग गीत बनाकर दुनिया के सामने पेश करने की बात हो हर रूप में ऑडियंस ने उनको खुली बाहों से स्वीकार किया और बदले में इतना प्यार दिया कि भजनों की दुनिया का सबसे बड़ा सम्राट बना दिया।आज जिस मुकाम पर वह है शायद ही किसी ने भजनों की दुनिया में उतना मुकाम पाया होगा यह सब और सब केवल जनता के असीम प्रेम की वजह से संभव हुआ है इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वह “जन गायक” है। जिन्होंने जनमानस के मन पर अमिट छाप छोड़ी है।

23 अगस्त 1981 को राजस्थान के बाड़मेर जिले के शिवकर गांव के मध्यमवर्ग परिवार में जन्म हुआ एक विलक्षण प्रतिभा का जो कि आगे चलकर पूरी दुनिया में भजनों के सम्राट बने वह है हमारे सबके प्रिय प्रकाश माली जी जिनको आज किसी भी परिचय की आवश्यकता नहीं है वह अपने आप में एक परिचय है भजनों का। जिन्होंने भजनों को विश्व विख्यात किया और यह बताया कि हमारे लोकगीत की जो खुशबू है वह आज भी उतनी ही बरकरार है जो सदियों पहले हुआ करती थी।

प्रकाश माली जी का संगीत का यह सफर चुनौतीपूर्ण रहा।उनको बाल्यकाल से ही भजन गायन में बहुत रूचि थी और घरवालों की पाबंदी के बाद भी आसपास जहां भी जागरण होते थे वह वहां पर जाते थे और अप्रत्यक्ष रूप से उन सभी को सुनकर सीखने की कोशिश करते थे और प्रारंभिक शिक्षा के दौरान भी स्कूल के जो भी प्रोग्राम होते हैं उनमें भाग लिया करते थे। वह यह ठान चुके थे कि मुझे इसी क्षेत्र में जाना है और भजनों को फिर से वही मुकाम पर वापस लेकर आना है।खासकर के लोक गीतों को और इसके लिए उन्होंने आसपास के जागरण में जाकर मंजीरा, हारमोनियम, ढोलक बजाना सीखना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने अपने गाने की कला को आगे बढ़ाते हुए विभिन्न जगहों जहां पर प्रोग्राम होते थे वह गाना शुरू किया।लेकिन उनको यह महसूस हुआ कि संगीत और भजन की संपूर्ण शिक्षा के लिए मुझे एक गुरु की आवश्यकता है जो मुझे पूर्ण रूप से इस कला से परिचित करवा कर इसकी बारीकियों को सीखा सके। उनकी तलाश उनके गुरु मोइनुद्दीन मनचला के रूप में खत्म हुई जो कि इस दुनिया का सबसे बड़ा नाम था। वहां पर इन्होंने पूर्ण रूप से शिक्षा दीक्षा ग्रहण की और निकल पड़े एक अद्भुत सफर पर जो कि था भजनों को विश्व में एक मुकाम दिलाने का।इस सफर में आने वाली विभिन्न चुनौतियों को मात देते हुए विभिन्न कार्यक्रम में छोटे-मोटे गाने गाते हुए आगे बढ़ते रहें और अपने सफर पर निरंतर आगे बढ़ते हुए चल रहें थे।इसी बीच इनको साल 2002 में मधु कैसेट के बैनर तले मौका मिला “धरती माता रो पहरू घाघरो” गाने का जो कि उनका पहला भजन था और जिससे इनको पहचान मिली और इस भजन को,इस गीत को लोगों ने इतना पसंद किया की प्रकाश माली अब एक जाना पहचाना नाम हो गया। लेकिन अभी वह जिसके हकदार थे वह मिलना बाकी था और बाद में वह दिन भी आया “जैसल धड़वी” गीत के रूप में जो इतना वायरल हुआ कि लोगों की जुबान पर चढ़ गया और प्रकाश माली भजनों के सम्राट बन गए। प्रकाश माली जी के पॉपुलर भजनों की बात करें तो महाराणा प्रताप जीवनी, जैसल धाड़वी, गौमाता, बाबा रामदेव भजन ,पाबूजी राठौड़ भजन, तेजाजी महाराज भजन,स्वामी विवेकानंद जी की जीवनी,राजा हरिश्चंद्र की जीवनी, पन्नाधाय, राजा चंदन, आशापूरा माताजी, गोगा जी महाराज,राजस्थानी लोक गीत, बालाजी महाराज के भजन और भी बहुत सारे भजन इस फेहरिस्त में शामिल है।जिसे लोग आज भी बड़े चाव से सुनते हैं और उतना ही पसंद करते हैं।

प्रकाश माली जी केवल भजनों तक ही सीमित नहीं है वह समाजसेवी के रूप में भी उतने ही सक्रिय हैं और अपनी आमदनी का एक हिस्सा गौ माता को भी समर्पित करते हैं। गौशाला बनाने में,गायों की सेवा में लगवाने के लिए और गौ माता के लिए नि:शुल्क भजन संध्या का आयोजन करके उनके लिए भंडारों का आयोजन करवाना और भी विविध कार्य है जिनमें वह सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभाते हैं और हर आम और खास के वह सबसे चहेते इसीलिए है क्योंकि आज जिस मुकाम पर वह पहुंचे हैं वहां पर पहुंचकर कोई भी इतना सहज और सरल नहीं रह सकता लेकिन वह आज भी उतने ही सरल और सहज है इसके पीछे की वजह उनका जुड़ाव जड़ों से होने का है जो कि उनको औरों से अलग भी बनाता है और सबसे अपनत्व का एहसास भी करवाता है कि वह आज भी इतने बड़े मुकाम पर पहुंचने के बाद भी उतने ही विनम्रता के साथ सभी से मिलते हैं और सामाजिक सरोकार के कार्य में भी बढ़ -चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

उनके जीवन का एक वाक्य जो उन्होंने सकारात्मक रूप से लिया और वह वाक्य यह था कि उनका किसी के साथ भजन रिकॉर्डिंग हुआ जो उन्होंने बहुत अच्छा गाया अपनी तरफ से जो वह कर सकते थे उन्होंने किया लेकिन फिर भी शायद कहीं पर रिकॉर्डिंग कराने वालों को वह उतना अच्छा नहीं लगा और उन्होंने कुछ ऐसा कहा जिसको उन्होंने सकारात्मकता रूप में लेकर अपने खुद का एक अलग स्टूडियो बनाने का सोच लिया जो कि आज “मालानी स्टूडियो बालोतरा के रूप में जाना जाता है जहां पर वह निरंतर रूप से संगीत की साधना को सादे हुए नए-नए भजनों को हम तक पहुंचा रहे हैं और वह कहते हैं कि आगे भी मैं इसी प्रकार से सबको भजनों की सोंधी खुशबू से रूबरू करवाता रहूंगा और जहां कहीं भी किसी प्रतिभा को आगे बढ़ाने की बात आएगी वह भी करता रहूंगा। सामाजिक सरोकारों में अगर मेरा कोई योगदान किसी को आगे बढ़ा सकता है या फिर उसका उत्थान कर सकता है तो उसमें भी मैं अपनी सक्रिय भूमिका इसी प्रकार से निभाने के लिए तैयार रह