दुनिया की इन जगहों से चारों ओर फैल सकते हैं बड़े पैमाने पर बैक्टीरिया
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों (Impacts of Climate change) में पूरी दुनिया में ग्लेशियर का पिघलना (Melting of Glaciers) एक बड़ा प्रभाव माना जाता रहा है. इसके सबसे बड़ा दुष्प्रभाव समुद्रों और महासागरों के जलस्तरों का बढ़ना बताया गया है. नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चेतावानी दी है कि यदि इसी तरह के दुनिया के ग्लेशियर पिघलते रहे तो उनमें से भारी मात्रा में बैक्टीरिया (Huge amount of Bacteria) निकल सकते हैं जिसमें बहुत बड़ी संख्या में रोगाणु नदियों और झीलों में पहुंच कर चारों और फैल सकते हैं. पहली बार किसी अध्ययन में साफ तौर पर दर्शाया गया है कि ग्लेशियरों के नीचे भारी मात्रा में बैक्टीराया जैसे सूक्ष्मजीवी दबे हुए हैं.
कड़े कदम उठाने की जरूरत
अपने अध्ययन में अबेरिस्टविथ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस बात की जरूरत पर बल दिया है कि हमें ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए बहुत जल्दी ही प्रभावी कदम उठाने होंगे. शोधकर्ताओं ने यूरोप और उत्तरी अमेरिका के आठ और ग्रीनलैंड के दो ग्लेशियरों के पिघले पानी का अध्ययन किया और ऐसे चौंकाने वाले नतीजों पर पहुंच सके.
हिमनद और उनका पिघलना
ग्लेशियर या हिमनद बहुत धीमी गति से चलने वाले हिम की विशाल मात्रा की नदी होते हैं. इनके निर्मआण मे सैंकड़ों हजारों साल लगते हैं. जिस तरह से ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, महासागरों और समुद्रों का जलस्तर तेजी से उठ रहा है जो कि फिलहाल बहुत ही ज्यादा चिंता का विषय बना हुआ है.
भारी मात्रा में जिंदा सूक्ष्मजीव
शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि इन हालात में अगले 80 सालों में एक लाख टन से भी ज्यादा सूक्ष्मजीव पर्यावरण में आ सकते हैं यह संख्या पृथ्वी पर सभी हर इंसान के अंदर कोशिकाओं की संख्या के बराबर है. माइक्रोबायोलॉजिस्ट एर्विन एडवर्ड्स का कहना है कि यह अध्ययन पहली बार साफ तौर पर दिखा रहा है कि पृथ्वी के ग्लेशियरों के अंदर भारी पैमाने पर सूक्ष्मजीव जिंदा स्वरूप में छिपे हुए हैं.
आगे की स्थिति कैसी
एडवर्ड्स ने बताया कि कितनी संख्या में सूक्ष्मजीवी पर्यावरण में फैलेंगे यह इस बात पर निर्भर करता है कि ग्लेशियर कितनी तेजी से पिघलते हैं यानि हमारा ग्रह कितना और ज्यादा गर्म होता जाता है. गौरतलब हैकि टीम की ये गणनाएं सामान्य गर्म होने वाले हालात के आधार पर हैं जिन्हें सामान्य श्रेणी में जलवायु विशेषज्ञो की अंततरराष्ट्रीय टीम ने IPCC में निर्धारित किया है
पानी की गुणवत्ता पर सीधा असर
अनुमान है कि 2100 तक पूरी दुनिया का औसत वैश्विक तापमान 2 से 3 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ जाएगा और जैसे जैसे सूक्ष्मजीव नदियों और झीलों में शामिल होते हैं जाएंगे पानी की गुणवत्ता में भारी अंतर आ जाएगा. लेकिन इसके बाद कुछ ही दशकों तके बाद सूक्ष्मजीवों का नल बंद हो जाएगा क्योंकि ग्लेशियर ही पूरी तरह से गायब हो जाएंगे.
ग्लेशियर के पानी का प्रभाव
शोधकर्ताओं का कहना है कि वैश्विक रूप से 2 लाख कैचमैंट हैं यानि ऐसे इलाके हैं जहां से पानी नदियों या झीलों में पहुंचता है, जिनमें प्रमुख रूप से पानी ग्लेशियर से पिघल कर पहुंचता है और इनमें से कुछ बहुत ही संवेदनशील पर्यावरण वाले हैं जहां जैविक कार्बन और पोषण कम स्तर पर विकसित हुए हैं. वहीं दूसरों में बहुत सारी आर्थिक गतिविधियां होती है और अरबों लोगों का जीवनयापन प्रभावित होता है.
जलवायु पुरिवर्तन (Climate Change) के प्रभावों को लेकर वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि भारी मात्रा में बैक्टीरिया (Bacteria) और अन्य सूक्ष्मजीव दुनिया भर के ग्लेशियरों (Glaciers) से पिघल कर चारों ओर फैल सकते हैं. एक लाख टन के ये बैक्टीरिया दुनिया में कई तरह की बीमारियों को फैला सकते हैं. हालाकि इनके फैलने की गति ग्लेशियर के पिघलने यानी ग्लोबल वार्मिंग की रफ्तार पर निर्भर करेगी, इन से निपटना बहुत मुश्किल काम हो सकता है.